ख्वाब था शायद,
ख्वाब ही होगा
देश मेरा आजाद था शायद,
आजाद ही होगा
फ़िर क्यूँ ज़ुल्म थे आम
फ़िर क्यूँ धुआं सा उठ रहा था
क्यूँ बम और गोली चली थी
क्यूँ अवाम सर के बल पड़ी थी
ख्वाब था शायद,
ख्वाब ही होगा
जीवन यहाँ दुष्वार था शायद
दुष्वार ही होगा
फ़िर क्यूँ छोटे से काम की कीमत बड़ी थी
क्यूँ अपने ही भाई की उँगलियाँ
अपनी जेब में मिली थी
गले से निवाला छीनने में लगी थीं
ख्वाब था शायद,
ख्वाब ही होगा
कायरता का राज था शायद
राज ही होगा
क्यूँ जाति-धर्म की बिल्लियाँ
देश की रोटी पे लड़ने में जुटी थी
बंदरों की नज़रें भी उसी पर टिकी थी
क्यूँ माँ भेड़ियों के समक्ष असहाय पड़ी थी
ख्वाब था शायद
ख्वाब ही होगा
हम बच्चों का स्वार्थ था शायद
स्वार्थ ही होगा
क्यों भूख की अग्नि ह्रदय जला रही थी
क्यों जल की प्यास रूह सुखा रही थी
दरिद्र हाथ पसरे खड़े थे
बिचोलिये अपने कोष भर रहे थे
ख्वाब था शायद
ख्वाब ही होगा
अनुकम्पा का अभाव था शायद
आभाव ही होगा
क्यूँ लक्ष्मी का तिरस्कार हो रहा था
क्यूँ चाँद सूरज का इंतज़ार हो रहा था
माताओं की कोख सूनी हो रही थी
मानवता अपना संतुलन खो रही थी
ख्वाब था शायद
ख्वाब ही होगा
वह निर्दयी समाज था शायद
समाज ही होगा
क्यों हमारे रक्षकों की जितनी बहादुरी बड़ी थी
क्यों हमारी स्मरण शक्ति उतनी ही क्षीण थी
उनके लहू से नेता अपनी होली खेलते थे
क्यों एक आह भर के हम अपनी राह चल लेते थे
ख्वाब था शायद
ख्वाब ही होगा
सैनिक बस एक व्यापार था शायद
व्यापार ही होगा
क्यों यह पाप का घडा न भरता था
क्यों भगवन अपना अवतार न करता था
बुराई की अच्छाई पर विजय का भय था
आ जाओ मोरे श्याम, फ़िर गीता शिक्षा का समय था
ख्वाब था शायद
ख्वाब ही होगा
आस की डोर से बंधा विश्वास था शायद
विश्वास ही होगा
स्वप्न ही होता तोह अच्छा था
आँखें खोलते और भूल जाते
जीवन भी वही कुस्वप्न हो गया
जीवन से भाग कर कहाँ जाते
ख्वाब था शायद
ख्वाब ही होगा
दिल में छुपा आक्रोश था शायद
आक्रोश ही होगा
Everyday frustration of every Indian!
ख्वाब ही होगा
देश मेरा आजाद था शायद,
आजाद ही होगा
फ़िर क्यूँ ज़ुल्म थे आम
फ़िर क्यूँ धुआं सा उठ रहा था
क्यूँ बम और गोली चली थी
क्यूँ अवाम सर के बल पड़ी थी
ख्वाब था शायद,
ख्वाब ही होगा
जीवन यहाँ दुष्वार था शायद
दुष्वार ही होगा
फ़िर क्यूँ छोटे से काम की कीमत बड़ी थी
क्यूँ अपने ही भाई की उँगलियाँ
अपनी जेब में मिली थी
गले से निवाला छीनने में लगी थीं
ख्वाब था शायद,
ख्वाब ही होगा
कायरता का राज था शायद
राज ही होगा
क्यूँ जाति-धर्म की बिल्लियाँ
देश की रोटी पे लड़ने में जुटी थी
बंदरों की नज़रें भी उसी पर टिकी थी
क्यूँ माँ भेड़ियों के समक्ष असहाय पड़ी थी
ख्वाब था शायद
ख्वाब ही होगा
हम बच्चों का स्वार्थ था शायद
स्वार्थ ही होगा
क्यों भूख की अग्नि ह्रदय जला रही थी
क्यों जल की प्यास रूह सुखा रही थी
दरिद्र हाथ पसरे खड़े थे
बिचोलिये अपने कोष भर रहे थे
ख्वाब था शायद
ख्वाब ही होगा
अनुकम्पा का अभाव था शायद
आभाव ही होगा
क्यूँ लक्ष्मी का तिरस्कार हो रहा था
क्यूँ चाँद सूरज का इंतज़ार हो रहा था
माताओं की कोख सूनी हो रही थी
मानवता अपना संतुलन खो रही थी
ख्वाब था शायद
ख्वाब ही होगा
वह निर्दयी समाज था शायद
समाज ही होगा
क्यों हमारे रक्षकों की जितनी बहादुरी बड़ी थी
क्यों हमारी स्मरण शक्ति उतनी ही क्षीण थी
उनके लहू से नेता अपनी होली खेलते थे
क्यों एक आह भर के हम अपनी राह चल लेते थे
ख्वाब था शायद
ख्वाब ही होगा
सैनिक बस एक व्यापार था शायद
व्यापार ही होगा
क्यों यह पाप का घडा न भरता था
क्यों भगवन अपना अवतार न करता था
बुराई की अच्छाई पर विजय का भय था
आ जाओ मोरे श्याम, फ़िर गीता शिक्षा का समय था
ख्वाब था शायद
ख्वाब ही होगा
आस की डोर से बंधा विश्वास था शायद
विश्वास ही होगा
स्वप्न ही होता तोह अच्छा था
आँखें खोलते और भूल जाते
जीवन भी वही कुस्वप्न हो गया
जीवन से भाग कर कहाँ जाते
ख्वाब था शायद
ख्वाब ही होगा
दिल में छुपा आक्रोश था शायद
आक्रोश ही होगा
Everyday frustration of every Indian!
हिन्दी ब्लॉग की दुनिया में आपका तहेदिल से स्वागत है....
ReplyDeleteमै ऐसे भारत के लिए कोशिश करूँगा जिसमे उच्च और निम्न वर्गों का भेद नही होगा । ऐसे भारत में अस्पृश्यता का कोई अस्तित्व नही होगा । शराब और दूसरी नशीली चीजों के अभिशाप के लिए कोई स्थान नही होगा ...... उसमे महिलाओं को वही अधिकार होगे जो पुरुषों को होगे । न तो हम किसी का शोषण करेगे और न ही अपना शोषण होने देगे ....
ReplyDeleteहिन्दी ब्लॉग की दुनिया में आपका तहेदिल से स्वागत है....