Thursday, January 15, 2009

माशूक मेरी

दो लफ्जों में अफसाना-ऐ-हयात बयां कर गई
माशूक मेरी फलसफा-ऐ-ज़िन्दगी आसान कर गई

जो किए जाते थे हम सितम उन पर
वही बेरहम हम पर आजमा कर गई

गेज़-ऐ-हुस्न कहें या कहें जज़्बात
लफ्जों से आज दगा जुबां कर गई

Friday, January 2, 2009

The Feather

From heavens above you hover
flying here now, flying there then
I pursued you knowing without
what is it that I am after

Milky white were your hair
pink and red adorned the tail
Was it a dove or was it swan?
you lived under whose care

As cradle of the wind rocked
You came to me for a second
away you flew in the next
In roar of winds you mocked

Fiercely, passionately, I sped
towards but your charms eluded,
Challenged me to get you but
Like a shadow you always led

I caught you as I stretched once
Shocked to see It was ashes i hold
You collapsed when blew back to wind
was it a dream, or was it curse

feel my soft touch, you crave too
Having me is losing me, you sang
stretched a little but not just enough
Let you float, I am not so brave too

Thursday, January 1, 2009

याद है बाकी

दर्द की कोई स्मृति नहीं है
बस चुभन के निशान हैं बाकी
कल रात शायद कोहरा घाना था
आंखों में धुन्ध्लाहट है बाकी

शब्दों के नश्तर और वो सर्द नज़र
छलनी दिल में अभी लहू है बाकी
चाह कर भी कुछ कह सके
तुणीर में अभी बाण हैं बाकी

आंसुओं ने साथ छोड़ा
अब भी अपना मान है बाकी
आज एकांत में रुक सके
बह गया अन्तिम कतरा बाकी

गौ-धूलि में एक साया सा समां गया
पद-चिह्नों के उभार हैं बाकी
यादों को तो कुछ याद नहीं
क्यों मेज़ पर दो जाम हैं बाकी

वो सुबह कभी तो आयेगी

आसमान जो कल तक दिखता था, वो गया कहाँ
छा गए हैं बादल घने, छुप गया सूरज मेरा कहाँ

मज़बूत हाथ आज कन्धों से लटकने लगे हैं
कंधे झुक गए हैं, आँखें के अंगारे बुझने लगे हैं

क्या हुआ की लश्करों के हौसले थकने लगे हैं
क्या हुआ की सपने धुंधले दिखने लगे हैं

दिल पर मायूसी है छा गई एका अक
विश्वास का दीपक बुझने लगा अचानक

विजय के इतना समीप दिखता था मंज़र
क्यूँ अब पराजय की दिखने लगी है डगर

आज मदिरा भी होश घुमाने में असक्षम है
सहना होगा, जीना होगा, यही धर्म है

की हर निशा की भोर होना अटल है
बस तुम हो या हो, यह प्रश्न है

भोर की प्रतीक्षा, ही जीवन का लक्ष्य हो
जीवित हों जब प्रेरणा का सूर्य उदय हो

निराश निशा का अंत सूर्य की आंच करे
बादलों को छलनी धूप के बाण करें

मन को प्रफुल्लित एक नई बात करे
मुस्कानों का वापस उधार नई आस करे

एक ऐसे जहाँ में ऐसी यह भोर हो
सपने जीना का जहाँ दस्तूर हो

वो सुबह कभी तो आयेगी, वो सुबह कभी तो आयेगी
जीते हैं इसी धुन में, मुस्कराहट पर कभी तो खुशी छायेगी
वो सुबह कभी तो आयेगी, वो सुबह कभी तो आयेगी