अकेली रात थी, सर्द सा मंज़र था, उदासी थी छायी बहारों में
शौल लाना भूल गए थे, याद आया जब पहुंचे यादों के गलियारों में
वो भी न मिली गरमाने को, आंसू भी जम गए गालों कि कतारों में
कांपते किटकिटाते सी करते, आगे बड़े यादों के गलियारों में
कोई हमदम मिल जाता कि कुछ पल हाथ सेक लेते अंगारों में
कुछ और आगे चला तो एक आवाज़ गूंजी मन के गलियारों में
मेरा नाम लिया था किसी ने, सासों के तले, हौले से पुकारों में
चेहरा धुन्दला सा, काया छाया सी, थोडी रौशनी कम थी गलियारों में
तुम तो चली गयीं थी, आज कैसे आना हुआ, पूछा मैंने अहंकारों में
क्यों हैरान होते हो अब देख, जब तुमने ही बुलाया मुझे इन गलियारों में
नज़र में शोले, हाथ में अंगीठी कि गर्माहट, दिल कुछ कहने लगा दहाडों में
सुबह हो चली थी, दरवाज़े की कड़ी खुली थी, पर वो नहीं थी दूर तक गलियारों में
नींद खुली तो फ़िर वही तन्हाई थी, फ़िर कुछ बूँदें जमी थी, आंखों की किनारों में